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Thursday, January 23, 2020
गौमाता
गाय कि उत्पत्ति महत्व
भारत में गाय -
भारतीय गोवंश को माता का दर्जा दिया गया है इसलिए उन्हें "गौमाता" कहते
है | हमारे शास्त्रों में गाय
को पूजनीय बताया गया है इसीलिए हमारी माताएं बहनें रोटी बनाती है तो सबसे पहली
रोटी गाय के की होती है गाय का दूध अमृत तुल्य होता है |
जिस "गाय "को
हमारे भारत के वेदों ग्रंथतो में और श्रीमद् भगवत पुराण में वरण किया गया है वह
कामधेनु गौमाता और उनके गौवंशज हैं भारत
में वैदिक काल से ही गाय का विशेष महत्त्व रहा है। आरंभ में आदान प्रदान एवं
विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था
और मनुष्य की समृद्धि की
गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी
जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।[1] [2]
भगवत पुराण के अनुसार, सागर मंथान (समुद्रमंथन) के
दौरान दिव्य वैदिक गाय (गौमाता) के निर्माण की कहानी को प्रकाश में लाता है। पांच
दैवीय कामधेनु (वैदिक गाय जो हर इच्छा को पूरा करती है),
समुद्रमंथन के दौरान इस
धरती पर दिव्य गाय की उत्पत्ति |कामधेनु या सुरभी (संस्कृत: कामधुक:) ब्रह्मा द्वारा ली गई , दिव्य वैदिक गाय (गौमाता)
ऋषि को दी गई ताकि उसके दिव्य अमृत पंचगव्य का उपयोग यज्ञ,
आध्यात्मिक अनुष्ठानों और संपूर्ण मानवता के
कल्याण के लिए किया जा सके। गौ-सेवा से
धन-सम्पत्ति, आरोग्य आदि मनुष्य-जीवन
को सुखकर बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं
एक फक्कड़ साधू
अलख निरंजन करता – करता गावँ – गावँ फिर रहा था।
वो भिक्षा मागने के लिए एक माता के पास आया।
माता ने तुरंत भिक्षा दी।
पर वो साधू ने
देखा की यह माता उदास है । साधू ने माता से पूछा की माँ उदास क्यों हो ?
माता ने बताया की मेरा कोई पुत्र नहीं है , इसीलिए उदास हूँ
। साधू सिद्ध महात्मा थे
उसने माता को
झोली में से एक मुठ्ठी राख दी और कहा इसे खा ले पुत्र हो जायेगा। साधू चला गया।
माता ने बहुत सोचा
और फिर वो राख को
नहीं खाया। १२ साल बाद वो साधू फिर से उसी माता के पास आया और कहा की माता आपका
बेटा नहीं दिखाई दे
रहा माता ने कहा
की मैंने वो राख नहीं खाई साधू ने पूछा की माता तूने वो राख कहा फेंकी वो माता
साधू को गोबर के गढढे के पास ले गयी
मैंने राख यहाँ
फेंकी थी। उस साधू ने उस गोबर के गढढे मै से १२ साल का बालक पैदा कर दिया। वो ही
थे गुरु गोरखनाथ।
जिन्होंने गावं – गावं , शहर – शहर फिर कर एक ही मन्त्र दिया गोरख यानि गाय रख
तभी तेरा कल्याण होगा।
पूर्व में इस देस
के गुरूओं का एक ही मंत्र था गोरख। गोरख मतलब गौ माता को घर मैं रख।
आज के गुरुओं का
मन्त्र गाय मेरे आश्रम में रख मेरी गौशाला में रख है
ताकि वे एक गाय
के लिए 50 लोगो से चन्द ले
सके गाय एक भी ना पाले ..सबहि नचावत राम गुसाई।गुरु गोरखनाथ महाराज की जय।
1 – जिस घर मैं गौ के घी का दीपक जलता हैं वहां पर १० मीटर तक
सात्विक तरंगे निकलती हैं,
ये तो वैज्ञानिको
की रिपोर्ट हैं। अगर आपके पडोसी का घर १० मीटर के अन्दर आता होंगा तो उसका भी
कल्याण हो जायेगा।
2 – गोली मतलब जिसने गौ माता को लिया ,
घर मैं रखा उसको ज़िन्दगी
मैं कभी गोली नहीं खानी पड़ेगी।
3 – तुम्हारे यहाँ एक शब्द हैं “गोरखधंधा ” मतलब गौ को घर मैं रख तो तेरा धंधा अच्छा
चलेगा।
4 – घर मैं आप गौ माता का घी तो ला ही सकते हो। उस घी को अपने
नाक मैं जरुर डालना
क्योंकि १०१
बिमारिओ सिर्फ नाक मैं गाय का घी डालने से ख़तम हो जाती हैं जैसे की चश्मे का नंबर
, पित्त , उलटी , फेफड़ो की कमजोरी , सर दर्द आदि बहुत सी बीमारिया चुटकी मैं ख़तम हो जाएगी।
बोलो गौ माता की जय।
मानव #गौ की महिमा को समझकर उससे प्राप्त दूध, दही आदि पंचगव्यों का लाभ
ले तथा अपने जीवन को स्वस्थ, सुखी बनाये - इस उद्देश्य से हमारे परम
करुणावान ऋषियों-महापुरुषों ने गौ को माता का दर्जा दिया तथा कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन गौ-पूजन की परम्परा स्थापित की। यही मंगल दिवस गोपाष्टमी कहलाता है।#गाय के शरीर में सूर्य की
गो-किरण शोषित करने की अद्भुत शक्ति होने से उसके दूध, घी, झरण आदि में स्वर्णक्षार पाये जाते हैं जो आरोग्य व प्रसन्नता के लिए ईश्वरीय
वरदान हैं। पुण्य व स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी
चाहिए क्योंकि गौ-सेवा से सुख-समृद्धि होती है। इसलिए नहीं रहा कि प्राचीन काल
में भारत एक कृषि प्रधान देश था और आज भी है और गाय को अर्थव्यस्था की रीढ़ माना
जाता था। भारत जैसे और भी देश है, जो कृषि प्रधान रहे हैं लेकिन वहां गाय को इतना महत्व नहीं मिला जितना भारत
में। दरअसल हिन्दू धर्म में गाय के महत्व के कुछ आध्यात्मिक, धार्मिक और चिकित्सीय कारण
भी रहे हैं। आओ जानते हैं कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी...* गाय एकमात्र पशु ऐसे है जिसका
सब कुछ सभी की सेवा में काम आता है।* गाय का दूध, मूत्र, गोबर के अलावा दूध
से निकला घी, दही, छाछ, मक्खन आदि सभी बहुत ही
उपयोगी है। * गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय
की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम
कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था। * भगवान श्रीकृष्ण ने गाय के
महत्व को बढ़ाने के लिए गाय पूजा और गौशालाओं के निर्माण की नए सिरे से नींव रखी
थी। भगवान बालकृष्ण ने गाएं चराने का कार्य गोपाष्टमी से प्रारंभ किया था।* वैज्ञानिक शोधों से पता चला
है कि गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं।* गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी
में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाते
हैं। यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। * गाय की रीढ़ में स्थित
सूर्यकेतु नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होती है।* सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय
के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से
शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया
जाता है। * वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है
और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं।
पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं।* देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम 300 करोड़ जीवाणु होते हैं।* रूस में गाय के घी से हवन
पर वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं। * एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ
करने पर एक टन ऑक्सीजन बनती है।* गौवंशीय पशु अधिनियम 1995 के अंतर्गत 10 वर्ष तक का कारावास और 10,000 रुपए तक का जुर्माना है। * एक समय वह भी था, जब भारतीय किसान कृषि के
क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था। इसका कारण केवल गाय थी। * भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त
साधन थे। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था।* किंतु हरित क्रांति के नाम
पर सन् 1960 से 1985 तक रासायनिक खेती द्वारा
भारतीय कृषि को लगभग नष्ट कर दिया गया। अब खेत उर्वर नहीं रहे। अब खेतों से कैंसर
जैसी बीमारियों की उत्पत्ति होती है। * हरित क्रांति से पहले खेतों
को गाय के गोबर में गौमूत्र, नीम, धतूरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर
बनाए गए कीटनाशक द्वारा किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जाता था।* हिन्दू धर्म के अनुसार गाय
में 33 कोटि देवी-देवता निवास
करते हैं। कोटि का अर्थ करोड़ नहीं, प्रकार होता है। इसका
मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता
निवास करते हैं।
ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विन कुमार। ये मिलकर
कुल 33 होते हैं।
* शास्त्रों और
विद्वानों के अनुसार कुछ पशु-पक्षी ऐसे हैं, जो आत्मा की विकास यात्रा के अंतिम पड़ाव पर होते हैं।
उनमें से गाय भी एक है। इसके बाद उस आत्मा को मनुष्य योनि में आना ही होता है।
* कत्लखाने जा रही गाय
को छुड़ाकर उसके पालन-पोषण की व्यवस्था करने पर मनुष्य को गौयज्ञ का फल मिलता है।* भगवान शिव के प्रिय पत्र ‘बिल्वपत्र’ की उत्पत्ति गाय के गोबर
में से ही हुई थी।
* ऋग्वेद ने गाय को
अघन्या कहा है। यजुर्वेद कहता है कि गौ अनुपमेय है। अथर्ववेद में गाय को संपतियों
का घर कहा गया है। * इस देश में लोगों की
बोलियां खाने पीने के तरीके अलग हैं पर पृथ्वी की तरह ही सीधी साधी गाय भी बिना
विरोध के मनुष्य को सब देती है।
* पौराणिक मान्यताओं व
श्रुतियों के अनुसार, गौएं साक्षात विष्णु रूप है, गौएं सर्व वेदमयी और वेद गौमय है। भगवान श्रीकृष्ण को सारा ज्ञानकोष गोचरण से
ही प्राप्त हुआ। * भगवान राम के पूर्वज महाराजा दिलीप नन्दिनी गाय की पूजा करते थे। * गणेश भगवान का सिर कटने पर
शिवजी कर एक गाय दान करने का दंड रखा गया था और वहीं पार्वती को देनी पड़ी। * भगवान भोलेनाथ का वाहन
नन्दी दक्षिण भारत की आंगोल नस्ल का सांड था। जैन आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का
चिह्न बैल था। * गरुढ़ पुराण अनुसार वैतरणी पार करने के लिए गोदान का महत्व
बताया गया है।
* श्राद्ध कर्म में भी
गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों की ज्यादा से
ज्यादा तृप्ति होती है।
*स्वप्न में गौ अथवा वृषभ के दर्शन से कल्याण लाभ एवं व्याधि नाश होता है इसी
प्रकार स्वप्न में गौ के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना पाया है । स्वप्न में गौ का
घर में ब्याना, वृषभ की सवारी करना, तालाब के बीच में घृत मिश्रित खीर का भोजन भी उत्तम माना
गया है घी सहित खीर का भोजन तो राज्य प्राप्ति का सूचक माना गया है ।इसी प्रकार
स्वप्न में ताजे दुहे हुए फेनसहित दुग्ध का पान करनेवाले को अनेक भोगो की तथा दही
के देखने से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है । जो वृषभ से युक्त रथपर स्वप्न में
अकेला सवार होता है और उसी अवस्थायें जाग जाता है, उसे शीघ्र धन मिलता है स्वप्न में दही मिलनेसे धन की, घी मिलने से यश
की और दही खाने से भीे यश की प्राप्ति निश्चित है ।*
*यात्रा आरम्भ करते समय दही और दूध का दीखना शुभ शकुन माना गया है । स्वप्न में
दही भात का भोजन करने से कार्य सिद्धि होती है तथा बैल पर चढ़ने से द्रव्य लाभ
होता है एवं व्याधि से छुटकारा मिलता है । इसी प्रकार स्वप्र में वृषभ अथवा गौ का
दर्शन करने से कुटुम्ब की वृद्धि होती है । स्वप्न में सभी काली वस्तुओ का दर्शन
निन्दित माना गया है, केवल कृष्णा गौ का दर्शन शुभ होता है । (स्वप्न में गौ
दर्शन का फल, संतो के श्री मुख से सुना हुआ)*
*वृषभो को जगत् का पिता समझना चाहिये और गौएं संसार की माता हैं । उनकी पूजा
करने से सम्पूर्ण पितरों और देवताओं की पूजा हो जाती है । जिनके गोबर से लीपने पर
सभा भवन, घर और देवमंदिर भी शुध्द हो जाते हैं, उन गौओ से बढकर
और कौन प्राणी हो सकता है ?जो मनुष्य एक सालतक स्वयं भोजन करने के पहले प्रतिदिन दूसरे
की गाय को मुट्ठी भर घास खिलाया करता है, उसको प्रत्येक समय गौ की सेवा करनेका फल
प्राप्त होता है ।(महाभारत, आश्वमेधिकपर्व, वैष्णवधर्म )*
*देवता, ब्राह्मण, गौ, साधु और साध्वी
स्त्रियों के बल पर यह सारा संसार टिका हुआ है, इसी से वे परम पूजनीय हैं । गौए जिस स्थान पर
जल पीती हैं, वह स्थान तीर्थ है । गंगा आदि पवित्र नदियाँ गौस्वरूपा ही हैं ।जहा जिस मार्ग
से गौ माताए जलराशि को लांघती हुई नदी आदि को पार करती है,वहां गंगा, यमुना, सिंधु, सरस्वती आदि नदियाँ या तीर्थ निश्चित रूप से
विद्यमान रहते है।(विष्णुधर्मोत्तर पुराण . द्वी.खं ४२। ४९-५८)*
*हे ब्राह्मणो ! गाय के खुर से उत्पन्न धूलि समस्त पापो को नष्ट कर देनेवाली
है। यह धूलि चाहे तीर्थ की हो चाहे मगध कीकट आदि निकृष्ट देशों की ही क्यो न हो ।
इसमें विचार अथवा संदेह करने की कोई आवश्यकता नहीं । इतना ही नहीं वह सब प्रकार की
मङ्गलकारिणी, पवित्र करनेवाली और दुख दरिद्रतारूप अलक्ष्मी को नष्ट करनेवाली है ।गायो के
निवास करने से वहा की पृथ्वी भी शुद्ध हो जाती है । जहां गायें बैठती हैं वह स्थान, वह घर सर्वथा
पवित्र हो जाता है । वहां कोई दोष नहीं रहता । उनके नि: श्वास की हवा देवताओं के
लिये नीराज़न के समान है । गौओ को स्पर्श करना बडा पुण्यदायक है और उससे समस्त
दु-स्वप्न, पाप आदि भी नष्ट हो जाते हैं । गौओ के गरदन और मस्तक के बीच साक्षात् भगवती
गंगा का निवास है । गौएं सर्वदेेवमयी और
सर्वतीर्थमयी हैं । उनके रोएँ भी बड़े ही पवित्रताप्रद और पुण्यदायक हैं ।
(विष्णुधर्मोत्तर पुराण ,भगवान् हंस ब्राह्मणों से)*
*ब्राह्मणो! गौओ के शरीर को खुजलाने से या उनके शरीर के कीटाणुओ को दूर करनेसे
मनुष्य अपने समस्त पापों को धो डालता है । गौओ को गौ ग्रास दान करने से महान्
पुण्य की प्राप्ति होती है । गौओं को चराकर उन्हें जलाशय तक घुमाकर जल पिलाने से
मनुष्य अनन्त वर्षो तक स्वर्ग मे निवास करता है । गौओ के प्रचार के लिये गोचरभूमि
की व्यवस्था कर मनुष्य नि:संदेह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है । गौओ के लिये
गोशाला का निर्माणकर मनुष्य पूरे नगर का स्वामी बन जाता है और उन्हें नमक खिलाने
से मनुष्य को महान सौभाग्यकी प्राप्ति होती है । (विष्णुधर्मोत्तर पुराण ,भगवान् हंस
ब्राह्मणों से)* *विपत्ति में या कीचड़ में फंसी हुई या चोर तथा बाघ आदि के
भय से व्याकुल गौ को क्लेश से मुक्त कर मनुष्य अश्वमेधयज्ञ का फल प्राप्त करता है
। रुग्णावस्था मे गौओ को औषधि प्रदान करने से स्वयं मनुष्य सभी रोगों से मुक्त को
जाता है । गौओ को भय से मुक्त करनेपर मनुष्य स्वयं भी सभी भयो से मुक्त हो जाता है
।चांडाल के हाथ से गौ को खरीद लेने पर गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है तथा किसी
अन्य के हाथ से गाय को खरीदकर उसका पालन करने से गोपालक को गोमेध यज्ञ का फल
प्राप्त होता है । गौओं की शीत तथा धूप से रक्षा करनेपर स्वर्गकी प्राप्ति होती है
। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण ,भगवान् हंस ब्राह्मणों से)*
*गोमूत्र, गोमय, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत और कुशोदक
यह पञ्चगव्य स्नानीय और पेयद्रव्यों में परम पवित्र कहा गया है । ये सब मङ्गलमय
पदार्थ भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस आदि से रक्षा करनेवाले परममङ्गल तथा सब दुख-दोषो को नाश करनेवाले हैं ।
गोरोचना भी इसी प्रकार राक्षस, सर्पविष तथा सभी
रोगों को नष्ट करनेवाली एवं परम धन्य है ।जो प्रात:काल उठकर अपना मुख गोघृतपात्र
में रखे घी मे देखता है उसकी दुख: दरिद्रता सर्वदा के लिये समाप्त हो जाती है और
फिर पाप का बोझ नहीं ठहरता ।(विष्णुधर्मोत्तर पुराण, राजनीति एवं धर्मशास्त्रके सम्यक ज्ञाता पुष्कर
जी भगवान् परशुराम से)* *गायो,गोकुल, गोमय आदि पर थूक-खखार नहीं छोड़ना चाहिये । (पुष्कर परशुराम
संवाद)*
*जो गौओ के चलने के मार्ग में, चारागाह में जल की व्यवस्था करता है, वह वरुणलोक को
प्राप्तकर वहां दस हजार वर्षों तक विहार करता है और जहां जहां उसका आगे जन्म होता
है वह वहां सभी आनन्दो से परितृप्त रहता है । गोचरभूमि को हल आदि से जोतने पर चौदह
इन्द्रों पर्यन्त भीषण नरक की प्राप्ति होती है ।हे परशुराम जी ! जो गौओ के पानी
पीते समय विघ्न डालता है, उसे यही मानना चाहिये कि उसने घोर ब्रह्म हत्या की । सिंह, व्याघ्र आदि के
भय से डरी हुई गाय की जो रक्षा करता है और कीचड़ में फंसी हुई गायका जो उद्धार करता
है, वह कल्पपर्यन्त
स्वर्ग में स्वर्गीय भोगो का भोग करता है । गायों को घास प्रदान करने से वह
व्यक्ति अगले जन्म मे रूपवान हो जाता है और उसे लावण्य तथा महान सौभाग्यकी
प्राप्ति होती है । (पुष्कर परशुराम संवाद)*
*हे परशुरामजी ! गायों को बेचना भी कल्याणकारी नहीं है। गायों का नाम लेने से
भी मनुष्य पापो से शुद्ध हो जाता है । गौओ का स्पर्श सभी पापों का नाश करनेवाला
तथा सभी प्रकार का सौभाग्य एवं मङ्गल का परिचायक है । गौओका दान करनेसे अनेक
कुलोंका उद्धार को जाता है ।*
*मातृकुल, पितृकुल और भार्याकुलमे जहां एक भी गो माता निवास करती है वहां रजस्वला और
प्रसूति का आदि की अपवित्रता भी नहीं आती और पृथ्वी में अस्थि, लोहा होने का, धरती के आकार
प्रकार की विषमता का दोष भी नष्ट हो जाता है । गौओ के श्वास प्रश्वास से घर मे
महान् शान्ति होती है । सभी शास्त्रो में
गौओ के श्वास प्रश्वास को महानीराजन कहा गया है । हे परशुराम ! गौओ को छु
देने मात्र से मनुष्यों के सारे पाप क्षीण हो जाते हैं ।(पुष्कर परशुराम संवाद)*
*जिस को गाय का दूध, दही और घी खाने का सौभाग्य नहीं प्राप्त होता, उसका शरीर मल के
समान है । अन्न आदि पाँच रात्रितक, दूध सात रात्रि तक, दही बीस रात्रि तक और घी एक मास तक शरीर मे
अपना प्रभाव रखता है । जो लगातार एक मास तक बिना गव्यका(बिना गौ के दूध से उत्पन्न
पदार्थ)भोजन करता है उस मनुष्य के भोजन में प्रेतों को भाग मिलता है, इसलिये प्रत्येक
युुग में सब कार्यों के लिये एकमात्र गौ ही प्रशस्त मानी गयी है । गौ सदा और सब
समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये
चारों पुरुषार्थ प्रदान करने वाली है ।(पद्मपुराण, ब्रह्माजी और नारद मुनि संवाद)*
*गायो से उत्पन्न दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र और
रोचना-ये छ: अङ्ग (गोषडङ्ग) अत्यन्त पवित्र हैं और प्राणियोंके सभी भापों को नष्ट
कर उन्हें शुद्ध करनेवाले हैं । श्रीसम्पन्न बिल्व वृक्ष गौओ के गोबर से ही
उत्पन्न हुआ है । यह भगवान् शिवजी को अत्यन्त प्रिय है । चूँकि उस वृक्ष में
पद्महस्ता भगवती लक्ष्मी साक्षात् निवास करती हैं, इसीलिये इसे श्रीवृक्ष भी कहा गया है । बादमें
नीलकमल एवं रक्तकमलके बीज भी गोबरसे ही उत्पन्न हुए थे । गौओ के मस्तकसे उत्पन्न
परम पवित्र गोरोचना है समस्त अभीष्टो की सिद्धि करनेवाली तथा परम मङ्गलदायिनी है
।*
*अत्यन्त सुगन्धित गुग्गुल नाम का पदार्थ गौओ के मूत्र से ही उत्पन्न हुआ है ।
यह देखने से भी कल्याण करता है । यह गुग्गुल सभी देवताओं का आहार है, विशेषरूप भगवान्
शंकर का प्रिय आहार है । संसार के सभी मङ्गलप्रद बीच एवं सुन्दर से सुन्दर आहार
तथा मिष्टान्न आदि सब के सब गौ के दूध से ही बनाये जाते हैं । सभी प्रक्रार की
मङ्गल कामनाओ को सिद्ध करने के लिये गाय का दही लोकप्रिय है । देवताओ को तृप्त
करनेवाला अमृत नामक पदार्थ गायके घीसे ही उत्पन्न हुआ है । (भविष्यपुराण, उत्तरपर्व, अ.६९, भगवान् श्रीकृष्ण
युधिष्ठिर संवाद)*
*गौओ को खुजलाना तथा उन्हें स्नान कराना भी गोदान के समान फल वाला होता है । जो
भय से दुखी (भयग्रस्त) एक गाय की रक्षा करता है, उसे सौं गोदान का फल प्राप्त होता है । पृथ्वी
में समुद्र से लेकर जितने भी बड़े तीर्थ-सरिता-सरोवर आदि हैं, वे सब मिलकर भी
गौ के सींग के जल से स्नान करनेके षोडशांश के तुल्य भी नहीं होते।(बृहत्पाराशर
स्मृति, अध्याय ५)*
*राम-वनवास के समय भरत १४ वर्ष तक इसी कारण स्वस्थ रहकर आध्यात्मिक उन्नति करते
रहे, क्योंकि वे अन्न
के साथ गोमूत्रका सेवन करते थे ।*
*गोमूत्रयावकं श्रुत्वा भ्रातरं वल्कलाम्बरम्।।(श्रीमद्भागवत ९ । १० । ३४)*
*गोमाता का दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा केरे । ऐसा करने से
सातों द्वीपों सहित भूमण्डल की प्रदक्षिणा हो जाती है । गौएँ समस्त प्राणियो की
माताएँ एवं सारे सुख देने वाली हैं । वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को
नित्य गो माताओ की प्रदक्षिणा करनी चाहिये ।जिस व्यक्ति कें पास श्राद्धके लिये
कुछ भी न हो वह यदि पितरो का ध्यान करके गो माता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे तो
उसको श्राद्धका फल मिल जाता है । (निर्णयसिंधुु)*
*गौ माताए समस्त प्राणियोंकी माता हैं और सारे सुखों को देनेवाली हैं, इसलिये कल्याण
चाहने वाले मनुष्य सदा गोओं की प्रदक्षिणा करें । गौओ को लात न मारे । गौओ के
बीचसे होकर न निकले। मङ्गलकी आधारभूत गो-देवियोंकी सदा पूजा को । (महा ,अनु ६९ । ७-८)*
*जब गौए चर रही हों या एकांत में बैठी हों, तब उन्हें तंग न करें । प्यास से पीडित होकर जब
भी क्रोध से अपने स्वामी की ओर देखती है तो उसका बंधुबांधवोसहित नाश हो जाता है ।
राजाओ को चाहिये कि गोपालन और गोरक्षण करे । उतनी ही संख्या मे गाय रखे, जितनी का अच्छी
तरह भरण-पोषण हो सके । गाय कभी भी भूख से पीडित न रहे, इस बातपर विशेष ध्यान रखना चाहिये ।*
*जिसके घर में गाय भूख से व्याकुल होकर रोती है, वह निश्चय ही नरक में जाता है । जो पुरुष गायों
के घर में सर्दी न पहुँचने का और जल के बर्तन को शुद्ध जल से भर रखने का प्रबन्ध
कर देता है, वह ब्रह्मलोकमे आनन्द भोग करता है ।जो मनुष्य सिंह, बाघ अथवा और किसी भय से डरी हुई, कीचड़ में धसी हुई
या जलमें डूबती हुई गायको बचाता है वह एक कल्पतक स्वर्ग-सुख का भोग करता है ।
गायकी रक्षा, पूजा और पालन अपनी सगी माताके समान करना चाहिये । जो मनुष्य गायों को ताड़ना देता
है, उसे रौरव नरक की
प्राप्ति होती है । (हेभाद्रि)*
*गोबर और गोमूत्र से अलक्ष्मी का नाश होता है, इसलिये उनसे कभी
घृणा न करे। जिसके घरमें प्यासी गाय बंधी रहती है, रजस्वला कन्या अविवाहिता रहती है और देवता बिना
पूज़नके रहते हैं, उसके पूर्वकृत सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं । गायें जब इच्छानुसार चरती होती
हैं, उस समय जो मनुष्य
उन्हें रोकता है, उसके पूर्व पितृगण पतनोन्मुख होकर काँप उठते हैं । जो मनुष्य मूर्खतावश गायों
को लाठी से मारते हैं उनको बिना हाथके होकर यमपुरीमें जाना पड़ता है ।(पद्मपुराण, पाताल .अ १८)*
*गाय को यथायोग्य नमक खिलाने से पवित्र लोककी प्राप्ति होती है और जो अपने
भोजनसे पहले गाय को घास चारा खिलाकर तृप्त करता है, उसे सहस्त्र गोदानका फल मिलता है ।
(आदित्यपुराण)*
*अपने माता पिता की भाँति श्रद्धापूर्वक गायों का पालन करना चाहिये । हलचल, दुर्दिन और विप्लव
के अवसर पर गायों को घास और शीतल जल मिलता
रहे, इस बातका प्रबन्ध
करते रहना चाहिये । (ब्रह्मपुराण)*
*गोमाता का दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा केरे । ऐसा करने से
सातों द्विपोसहित भूमण्डल की प्रदक्षिणा हो जाती है । गौएँ समस्त प्राणियो की माताएँ
एवं सारे सुख देनेवाली हैं । वृद्धिकी आकांक्षा करनेवाले मनुष्य को नित्य गो माताओ
की प्रदक्षिणा करनी चाहिये ।*
*जिस व्यक्तिकें पास श्राद्धके लिये कुछ भी न हो वह यहि पितरो का ध्यान करके गो
माता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे तो उसको श्राद्धका फल मिल जाता है ।
(निर्णयसिंधुु)*
*महर्षि वसिष्ठ जी ने अनेक प्रकार से गो माता की महिमा तथा उनके दान आदिकी
महिमा बताते हुए मनुष्यो के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपदेश तथा एक मर्यादा स्थापित
करते हुए कहा –*
*नाकीर्तयित्वा गा: सुप्यात् तासां संस्मृत्य चोत्पतेत्। सायंप्रातर्नमस्येच्च
गास्तत: पुष्टिमाप्नुयात्।।*
*गाश्च संकीर्तयेन्नित्यं नावमन्येेत तास्तथा ।*
*अनिष्ट स्वप्नमालक्ष्य गां नर: सम्प्रकीर्तयेत्।।*
*(महाभा, अनु ७८। १६, १८)*
*अर्थात् ‘ गौओ का नामकीर्तन किये बिना न सोये । उनका स्मरण करके ही उठे और सबेरे-शाम
उन्हें नमस्कार करे। इससे मनुष्य को बल और पुष्टि प्राप्त होती है । प्रतिदिन गायो
का जाम ले, उनका कभी अपमान न को । यदि बुरे स्वप्न दिखायी दें तो मनुष्य गो माता का नाम
ले ।*
*इसी प्रकार वे आगे कहते हैं की जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक रात-दिन निम्न
मन्त्रका बराबर कीर्तन करता है वह सम अथवा विषम किसी भी स्थितिमें भयसे सर्वथा
मुक्त हो जाता है और सर्वदेवमयी गोमाताका कृपा पात्र बन जाता है ।*
*मन्त्र इस प्रकार है –*
*गा वै पश्याम्यहं नित्यं जाब: पश्यन्तु मां सदा ।**गावोsस्माकं वयं तासां
यतो गावस्ततो वयम्।।**(महाभा, अनु ७८ । २४)*
*अर्थात् मैं सदा गौओका दर्शन करू और गौए मुझपर कृपा दृष्टि करें । गौए हमारी
हैं और हम गौओ के हैं । जहां गौए रहें, वहीं हम रहें, चूँकि गौए हैं इसी से हमलोग भी हैं।
धार्मिक उपवासः-
1. गोपद्वमव्रतः- सुख, सौभाग्य, संपत्ति, पुत्र, पौत्र, आदि के सुखों को देने वाला
है।
2. गोवत्सद्वादशी व्रतः- इस व्रत से समस्त मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं।
3. गोवर्धन पूजाः- इस लोक के समस्त सुखों में वृद्धि के साथ मोक्ष की प्राप्ति
होती है।
4. गोत्रि-रात्र व्रतः- पुत्र प्राप्ति, सुख भोग, और गोलोक की प्राप्ति होती है।
5. गोपाअष्टमीः- सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है।
6. पयोव्रतः- पुत्र की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दम्पत्तियों को संतान
प्राप्ति होती है।
गाय का
दूध :
* गाय का दूध पीने से
शक्ति का संचार होता है। यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
* हाथ-पांव में जलन
होने पर गाय के घी से मालिश करने पर आराम मिलेगा।
* गाय के दूध से
रेडियो एक्टिव विकिरणों से होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है।
* गाय का दूध फैटरहित, परंतु शक्तिशाली होता है।
उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है।
* गाय के घी व गोबर से
निकलने वाले धुएं से प्रदूषणजनित रोगों से बचा जा सकता है।
* गाय का दूध व घी
अमृत के समान हैं। गाय के दूध का प्रतिदिन सेवन अनेक बीमारियों से दूर रखता है।
* सफेद रंग की गाय का
दूध पाचक होता है, जो शरीर को हष्ट-पुष्ट बनाता है।
* चितकबरी गाय का दूध
पित्त बढ़ाता है, जो शरीर को चंचल
बनाता है।
* काले रंग की गाय का
दूध मीठा होता है, जो गैस के रोगों को दूर करता है।
* लाल रंग की गाय का
दूध रक्त बढ़ाता है, जो शरीर को स्फूर्ति वाला बनाता है।
* पीले रंग की गाय का
दूध पित्त को संतुलित करता है, जो शरीर को ओजपूर्ण बनाता है।
* गाय के दूध में
कैल्शियम 200 प्रतिशत, फॉस्फोरस 150 प्रतिशत, लौह 20 प्रतिशत, गंधक 50 प्रतिशत, पोटैशियम 50 प्रतिशत, सोडियम 10 प्रतिशत पाए जाते हैं।
* गाय के दूध में
विटामिन C 2प्रतिशत, विटामिन A (आईक्यू) 174 और विटामिन D 5 होता है।
जो खाए चना वो रहे बना
जो पीवै दही, वह रहे सही
* दही हमारे पाचन
तंत्र को सेहतमंद बनाए रखने में बहुत ही कारगर सिद्ध होता है।
रात में दही नहीं खाते हैं।
* दही में सुपाच्य
प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं, जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते हैं।
* दही का स्वास्थ्य के
साथ-साथ सौंदर्य निखारने में भी महत्वपूर्ण स्थान है। चेहरे की त्वचा और बालों पर
दही लगाने से लाभ मिलता है।
* दही चेहरे, गर्दन व बाजू आदि के सौंदर्य
को तो निखारता ही है, साथ ही यह बालों को पोषण देने में भी बहुत सहायक है।
* दही के नियमित सेवन
से आंतों के रोग और पेट की बीमारियां नहीं होती हैं तथा कई प्रकार के विटामिन बनने
लगते हैं। दही में जो बैक्टीरिया होते हैं, वे लैक्टोज बैक्टीरिया उत्पन्न करते हैं।
* दही में हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और गुर्दों
की बीमारियों को रोकने की अद्भुत क्षमता है। यह हमारे रक्त में बनने वाले
कोलेस्ट्रॉल नामक घातक पदार्थ को बढ़ने से रोकता है जिससे वह नसों में जमकर ब्लड
सर्कुलेशन को प्रभावित न करे और हार्ट बीट सही बनी रहे।
* दही में कैल्शियम की
मात्रा काफी पाई जाती है, जो हमारे शरीर में हड्डियों का विकास करती है। दांतों एवं नाखूनों की मजबूती
एवं मांसपेशियों के सही ढंग से काम करने में भी सहायता करती है।
* दही के सेवन से शरीर
की फालतू चर्बी कम करने में सहायता मिलती है।
* नींद न आने से
परेशान रहने वाले लोगों को दही व छाछ का सेवन करना चाहिए।
* दही में बेसन मिलाकर
लगाने से त्वचा में निखार आता है। मुंहासे दूर होते हैं।
* दही में शहद मिलाकर
चटाने से छोटे बच्चों के दांत आसानी से निकलते हैं।
* छाछ पीने से पेट की
गर्मी हट जाती है और पाचन तंत्र भी सुचारु रूप से कार्य करता है।
* नींद न आने से
परेशान रहने वाले लोगों को दही व छाछ का सेवन करना चाहिए।
* छाछ में हेल्दी
बैक्टीरिया और कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, साथ ही लैक्टोज शरीर में आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को
बढ़ाता है जिससे आप तुरंत ऊर्जावान हो जाते हैं।
* अगर कब्ज की शिकायत
बनी रहती हो तो अजवाइन मिलाकर छाछ पीएं।
* पेट की सफाई के लिए
गर्मियों में पुदीना मिलाकर लस्सी बनाकर पीएं।
* जिन लोगों को खाना
ठीक से न पचने की शिकायत होती है, उन्हें रोजाना छाछ में भुने जीरे का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक का चूर्ण समान मात्रा में
मिलाकर धीरे-धीरे पीना चाहिए।
* यदि आप डाइट पर हैं
तो रोज एक गिलास मट्ठा पीना न भूलें। यह लो कैलोरी और फैट में कम होता है।
* बटर मिल्क में
विटामिन सी, ए, ई,
के और बी पाए जाते हैं,
जो कि शरीर के पोषण की जरूरत को पूरा करता है।
* यह स्वस्थ पोषक
तत्वों जैसे लोहा, जस्ता, फॉस्फोरस और
पोटैशियम से भरा होता है, जो कि शरीर के लिए बहुत ही जरूरी मिनरल माना जाता है।
* गर्मी में छाछ पीने
से लू नहीं लगती। लग जाए तो छाछ पीना शुरू कर दें।
मक्खन : मक्खन, माखन या बटर दुग्ध वर्ग का
एक उत्पादन है, जो दही को बिलो (मथ)
कर छाछ बनाते समय निकलता है। मक्खन को तपाकर ही घी निकाला जाता है।
* गाय के दूध से
निकाला हुआ मक्खन हितकारी, वृष्य, वर्ण को उत्तम करने
वाला, बलकारी, अग्नि प्रदीपक, ग्राही और वात, पित्त, रक्त विकार, क्षय, बवासीर, लकवा तथा खांसी को नष्ट
करता है।
*गाय का मक्खन
शारीरिक क्षमता बढ़ाने और पेट संबंधित सभी रोगों को दूर करने में सहायक होता है।
* गाय के मक्खन में
मथु और मिश्री मिलाकर खाने से कई रोगों में लाभ मिलता है।
* आंखों में जलन हो तो
गाय का मक्खन ऊपर से चुपड़ लें, आराम मिलेगा।
* मक्खन का प्रयोग
ज्यादातर ब्रेड और टोस्ट पर लगाकर खाने या दाल, शाक में डालकर खाने या सूप में डालकर पीने में किया जाता
है।
गाय के घी के चमत्कारिक
फायदे...
गाय का घी :
* ऐसी मान्यता है कि
काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है।
* घी से हवन करने पर
लगभग 1 टन ताजे ऑक्सीजन का
उत्पादन होता है। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने तथा धार्मिक
समारोहों में यज्ञ करने की प्रथा प्रचलित है।
* गाय का घी नाक में
डालने से बाल झड़ना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते हैं।
* गाय के घी को नाक
में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
* देसी गाय के घी में
कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर
से बचा जा सकता है।
* दो बूंद देसी गाय का
घी नाक में सुबह-शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है।
* दो बूंद देसी गाय का
घी आंखों में डालने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
1. गौ मूत्र कड़क, कसैला, तीक्ष्ण और ऊष्ण
होने के साथ-साथ विष नाशक, जीवाणु नाशक, त्रिदोष नाशक, मेधा शक्ति वर्द्धक और
शीघ्र पचने वाला होता है। इसमें नाइट्रोजन, ताम्र, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटाशियम, सल्फेट, फास्फेट, क्लोराइड और सोडियम की
विभिन्न मात्राएं पायी जाती हैं। यह शरीर में ताम्र की कमी को पूरा करने में भी
सहायक है।
2. गौमूत्र को न केवल रक्त के सभी तरह के विकारों को दूर करने वाला, कफ,
वात व पित्त संबंधी तीनो दोषों का नाशक, हृदय रोगों व विष प्रभाव को
खत्म करने वाला, बल-बुद्धि देने वाला
बताया गया है, बल्कि यह आयु भी
बढ़ाता है।
3. पेट की बीमारियों के लिए गौमूत्र रामवाण की तरह काम करता है, इसे चिकित्सीय सलाह के
अनुसार नियमित पीने से यकृत यानि लिवर के बढ़ने की स्थिति में लाभ मिलता है। यह
लिवर को सही कर खून को साफ करता है और रोग से लड़ने की क्षमता विकसित करता है।
4. 20 मिली गौमूत्र प्रात: सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है।
1. भूख की कमी,
2. अजीर्ण,
3. हर्निया,
4. मिर्गी,
5. चक्कर आना,
6. बवासीर,
7. प्रमेह,
8.मधुमेह,
9.कब्ज,
10. उदररोग,
11. गैस,
12. लूलगना,
13.पीलिया,
14. खुजली,
15.मुखरोग,
16.ब्लडप्रेशर,
17.कुष्ठ रोग,
18. जांडिस,
19. भगन्दर,
20. दन्तरोग,
21. नेत्र रोग,
22. धातु क्षीणता,
23. जुकाम,
24. बुखार,
25. त्वचा रोग,
26. घाव,
27. सिरदर्द,
28. दमा,
29. स्त्रीरोग,
30. स्तनरोग,
31.छिहीरिया,
32. अनिद्रा।
5. गौमूत्र को मेध्या और हृदया कहा गया है। इस तरह से यह दिमाग और हृदय को शक्ति
प्रदान करता है। यह मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय की रक्षा करता है और
इन अंगों को प्रभावित करने वाले रोगों से बचाता है।
6. इसमें कैसर को रोकने वाली ‘करक्यूमिन‘ पायी जाती है |
7. कैंसर की चिकित्सा में रेडियो एक्टिव एलिमेन्ट प्रयोग में लाए जाते है | गौमूत्र में विद्यमान
सोडियम,पोटेशियम,मैग्नेशियम,फास्फोरस,सल्फर आदि में से कुछ लवण
विघटित होकर रेडियो एलिमेन्ट की तरह कार्य करने लगते है और कैंसर की अनियन्त्रित
वृद्धि पर तुरन्त नियंत्रण करते है | कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते है |
अर्क आँपरेशन के बाद बची
कैंसर कोशिकाओं को भी नष्ट करता है | यानी गौमूत्र में कैसर बीमारी को दूर करने की शक्ति समाहित
है |
8. दूध देने वाली गाय के मूत्र में “लेक्टोज” की मात्रा आधिक पाई जाती है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों के लिए उपयोगी होता है।
9. गाय के मूत्र में आयुर्वेद काखजाना है! इसके अन्दर ‘कार्बोलिक एसिड‘ होता है जो कीटाणु नासक है, यह किटाणु जनित रोगों का भी नाश करता है।गौमूत्र चाहे जितने
दिनों तक रखे, ख़राब नहीं होता है।
10. जोड़ों के दर्द में दर्द वाले स्थान पर गौमूत्र से सेकाई करने से आराम मिलता
है। सर्दियों के मौषम में इस परेशानी में सोंठ के साथ गौ मूत्र पीना फायदेमंद
बताया गया है।
11. गैस की शिकायत में प्रातःकाल आधे कप पानी में गौ मूत्र के साथ नमक और नींबू का
रस मिलाकर पीना चाहिए।
12. चर्म रोग में गौ मूत्र और पीसे हुए जीरे के लेप से लाभ मिलता है। खाज, खुजली में गौ मूत्र उपयोगी
है।
13. गौमूत्र मोटापा कम करने में भी सहायक है। एक ग्लास ताजे पानी में चार बूंद गौ
मूत्र के साथ दो चम्मच शहद और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित पीने से लाभ
मिलता है।
14. गौमूत्र का सेवन छानकर किया जाना चाहिए। यह वैसा रसायन है, जो वृद्धावस्था को रोकता है
और शरीर को स्वस्थ्यकर बनाए रखता है।
15. गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस गुणा बढ़ा
देता है| गौमूत्र का कई खाद्य
पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे गौमूत्र के साथ गुड़,
गौमूत्र शहद के साथ आदि|
16. अमेरिका में हुए एक अनुसंधान से सिध्द हो गया है कि गौ के पेट में “विटामिन बी” सदा ही रहता है। यह सतोगुणी
रस है व विचारों में सात्विकता लाता है।
17. गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट साफ करने के बाद
खाली पेट लेना चाहिए| गौमूत्र सेवन के 1 घंटे पश्चात ही भोजन करना चाहिए|
18. गौमूत्र देशी गाय का ही सेवन करना सही रहता है। गाय का गर्भवती या रोग ग्रस्त
नहीं होना चाहिए। एक वर्ष से बड़ी बछिया का गौ मूत्र बहुत लाभकारी होता है।
23. देसी गाय के गोबर-मूत्र-मिश्रण से ‘`प्रोपिलीन ऑक्साइड” उत्पन्न होती है, जो बारिस लाने में सहायक होती है| इसी के मिश्रण से ‘इथिलीन ऑक्साइड‘ गैस निकलती है जो ऑपरेशन थियटर में काम आता है |
24. गोमुत्र कीटनाशक के रूप में भी उपयोगी है। देसी गाय के एक लीटर गोमुत्र को आठ
लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग किया जाता है । गोमुत्र के माध्यम से फसल को नैसर्गिक
युरिया मिलता है। इस कारण खाद के रूप में भी यह छिड़काव उपयोगी होता है । गौमूत्र
से औषधियाँ एवं कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है।
25. अमेरिका ने गौ मूत्र पर ४ पेटेंट ले लिए हैं, और अमेरिकी सरकार हर साल भारत से गाय का मूत्र आयात करती है
और उससे कैंसर की दवा बनाती हैं । उसको इसका महत्व समझ आने लगा है। जबकि हमारे
शास्त्रो मे करोड़ो वर्षो पहले से इसका महत्व बताया गया है।
आयुर्वेद में गौमूत्र के
ढेरों प्रयोग कहे गए हैं। गौमूत्र का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने
पाया, कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर के
विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का
नियमित सेवन करने से कई बीमारियों को खत्म किया जा सकता है। जो लोग नियमित रूप से
थोड़े से गौमूत्र का भी सेवन करते हैं, उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है। मौसम परिवर्तन के
समय होने वाली कई बीमारियां दूर ही रहती हैं। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता
है।
26. गौ मूत्र कड़क, कसैला, तीक्ष्ण और ऊष्ण
होने के साथ-साथ विष नाशक, जीवाणु नाशक, त्रिदोष नाशक, मेधा शक्ति वर्द्धक और
शीघ्र पचने वाला होता है। इसमें नाइट्रोजन, ताम्र, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटाशियम, सल्फेट, फास्फेट, क्लोराइड और सोडियम की
विभिन्न मात्राएं पायी जाती हैं। यह शरीर में ताम्र की कमी को पूरा करने में भी
सहायक है।
27. गौमूत्र को न केवल रक्त के सभी तरह के विकारों को दूर करने वाला, कफ,
वात व पित्त संबंधी तीनो दोषों का नाशक, हृदय रोगों व विष प्रभाव को
खत्म करने वाला, बल-बुद्धि देने वाला
बताया गया है, बल्कि यह आयु भी
बढ़ाता है।
गोबर के
फायदे
गाय के गोबर से जुड़े
वैज्ञानिक तथ्य... बायोगैस, गोबर गैस : गैस और बिजली
संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन चल पड़ा है।
पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस तो सब
प्राकृतिक स्रोत हैं, किंतु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती
रहेगी।
प्लांट के पर्यावरणीय फायदे
: एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन
डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है।
हाल ही में कानपुर की एक
गौशाला ने एक ऐसा सीएफएल बल्ब बनाया है, जो बैटरी से चलता है। इस बैटरी को चार्ज करने के लिए
गौमूत्र की आवश्यकता पड़ती है। आधा लीटर गौमूत्र से 28 घंटे तक सीएफएल जलता रहेगा। सरकार को इस ओर ध्यान देना
चाहिए।
* गोबर गैस संयंत्र
में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में
किया जाता है?
* खेती के लिए भारतीय
गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों
से सोना उगलती आ रही है।
* वैज्ञानिक कहते हैं
कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया
जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के
कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है।
* गाय के सींग गाय के
रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह
एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी ये सुरक्षित
बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेष्ठ गुणवत्ता की खाद
बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
* गौमूत्र और गोबर
फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और
गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक
उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया
अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को
भी शुद्ध रखता है।
* कृषि में रासायनिक
खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की
उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की
गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में
स्वतः खाद डलती जाती है।
* प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए
लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित
नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ
बनाया जा सकता है।
* गाय के गोबर का चर्म
रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल में मकानों की दीवारों और भूमि
को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था
वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का
प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है।
ब्रह्महत्यां च करोति
ह्यतिदेशिकीम्।
यो हि गच्छत्यगम्यां च यः
स्त्रीहत्यां करोति च ॥ २३ ॥
भिक्षुहत्यां महापापी
भ्रूणहत्यां च भारते।
कुम्भीपाके वसेत्सोऽपि
यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥ २४ ॥
देवीभागवतपुराणम्
यम उवाच
छिनत्ति जीवं खड्गेन
दयाहीनः सुदारुणः ।
नरघाती हन्ति नरमर्थलोभेन
भारते ॥ १ ॥
असिपत्रे वसेत्सोऽपि
यावदिन्द्राश्चतुर्दश ।
तेषु यो ब्राह्मणान् हन्ति
शतमन्वन्तरं वसेत् ॥ २ ॥
छिन्नाङ्गः संवसेत् सोऽपि
खड्गधारेण सन्ततम् ।
अनाहारः
शब्दमुच्चैर्यमदूतेन ताडितः ॥ ३ ॥
मन्थानः शतजन्मानि
शतजन्मानि सूकरः ।
कुक्कुटः सप्त जन्मानि
शृगालः सप्तजन्मसु ॥ ४ ॥
व्याघ्रश्च सप्त जन्मानि
वृकश्चैव त्रिजन्मसु ।
सप्तजन्मसु मण्डूको यमदूतेन
ताडितः ॥ ५ ॥
स भवेद्भारते वर्षे
महिषश्च ततः शुचिः ।
ग्रामाणां नगराणां वा दहनं
यः करोति च ॥ ६ ॥
क्षुरधारे वसेत्सोऽपि
छिन्नाङ्गस्त्रियुगं सति ।
ततः प्रेतो भवेत्सद्यो
वह्निवक्त्रो भ्रमन्महीम् ॥ ७ ॥
सप्तजन्मामेध्यभोजी कपोतः
सप्तजन्मसु ।
ततो भवेन्महाशूली मानवः सप्तजन्मनि
॥ ८ ॥
सप्तजन्म गलत्कुष्ठी ततः
शुद्धो भवेन्नरः ।
परकर्णे मुखं दत्त्वा
परनिन्दां करोति यः ॥ ९ ॥
परदोषे महाश्लाघी
देवब्राह्मणनिन्दकः ।
सूचीमुखे वसेत्सोऽपि
सूचीविद्धो युगत्रयम् ॥ १० ॥
ततो भवेद् वृश्चिकश्च
सर्पश्च सप्तजन्मसु ।
वज्रकीटः सप्तजन्म
भस्मकीटस्ततः परम् ॥ ११ ॥
ततो भवेन्मानवश्च
महाव्याधिस्ततः शुचिः ।
गृहिणां हि गृहं भित्त्वा
वस्तुस्तेयं करोति यः ॥ १२ ॥
गाश्च छागांश्च मेषांश्च
याति गोकामुखे च सः ।
ताडितो यमदूतेन वसेत्तत्र
युगत्रयम् ॥ १३ ॥
ततो भवेत्सप्तजन्म
गोजातिर्व्याधिसंयुतः ।
त्रिजन्मनि
मेषजातिश्छागजातिस्त्रिजन्मनि ॥ १४ ॥
ततो भवेन्मानवश्च नित्यरोगी
दरिद्रकः ।
भार्याहीनो बन्धुहीनः
सन्तापी च ततः शुचिः ॥ १५ ॥
सामान्यद्रव्यचौरश्च याति
नक्रमुखं च सः ।
ताडितो यमदूतेन
वसेत्तत्राब्दकत्रयम् ॥ १६ ॥
ततो भवेत्सप्तजन्म
गोपतिर्व्याधिसंयुतः ।
ततो भवेन्मानवश्च महारोगी
ततः शुचिः ॥ १७ ॥
हन्ति गाश्च गजांश्चैव
तुरगांश्च नगांस्तथा ।
स याति गजदंशं च महापापी
युगत्रयम् ॥ १८ ॥
ताडितो यमदूतेन नागदन्तेन
सन्ततम् ।
स भवेद्गजजातिश्च तुरगश्च
त्रिजन्मनि ॥ १९ ॥
गोजातिर्म्लेच्छजातिश्च ततः
शुद्धो भवेन्नरः ।
जलं पिबन्तीं तृषितां गां
वारयति यः पुमान् ॥ २० ॥
नरकं गोमुखाकारं
कृमितप्तोदकान्वितम् ।
तत्र तिष्ठति सन्तप्तो
यावन्मन्वन्तरावधि ॥ २१ ॥
ततो नरोऽपि गोहीनो महारोगी
दरिद्रकः ।
सप्तजन्मान्त्यजातिश्च ततः
शुद्धो भवेन्नरः ॥ २२ ॥
गोहत्यां ब्रह्महत्यां च करोति
ह्यतिदेशिकीम् ।
यो हि गच्छत्यगम्यां च यः
स्त्रीहत्यां करोति च ॥ २३ ॥
भिक्षुहत्यां महापापी
भ्रूणहत्यां च भारते ।
कुम्भीपाके वसेत्सोऽपि
यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥ २४ ॥
ताडितो यमदूतेन
चूर्ण्यमानश्च सन्ततम् ।
क्षणं पतति वह्नौ च क्षणं
पतति कण्टके ॥ २५ ॥
क्षणं पतेत्तप्ततैले तप्तो
येन क्षणं क्षणम् ।
क्षणं च तप्तलोहे च क्षणं च
तप्तताम्रके ॥ २६ ॥
गृध्रो जन्मसहस्राणि
शतजन्मानि सूकरः ।
काकश्च सप्त जन्मानि
सर्पश्च सप्तजन्मसु ॥ २७ ॥
षष्टिवर्षसहस्राणि
विष्ठायां जायते कृमिः ।
नानाजन्मसु स वृषस्ततः
कुष्ठी दरिद्रकः ॥ २८ ॥
सावित्र्युवाच
विप्रहत्या च गोहत्या
किंविधा चातिदैशिकी ।
का वा नृणामगम्या च को वा
संध्याविहीनकः ॥ २९ ॥
अदीक्षितः पुमान्को वा को
वा तीर्थप्रतिग्रही ।
द्विजः को वा ग्रामयाजी को
वा विप्रोऽथ देवलः ॥ ३० ॥
शूद्राणां सूपकारश्च
प्रमत्तो वृषलीपतिः ।
एतेषां लक्षणं सर्वं वद
वेदविदां वर ॥ ३१ ॥
धर्मराज उवाच
श्रीकृष्णे च
तदर्चायामन्येषां प्रकृतौ सति ।
शिवे च शिवलिङ्गे च सूर्ये
सूर्यमणौ तथा ॥ ३२ ॥
गणेशे वाथ दुर्गायामेवं
सर्वत्र सुन्दरि ।
यः करोति भेदबुद्धिं
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ३३ ॥
स्वगुरौ स्वेष्टदेवे च
जन्मदातरि मातरि ।
करोति भेदबुद्धिं यो
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ३४ ॥
वैष्णवेषु च भक्तेषु
ब्राह्मणेष्वितरेषु च ।
करोति भेदबुद्धिं यो
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ३५ ॥
विप्रपादोदके चैव
शालग्रामोदके तथा ।
करोति भेदबुद्धिं यो
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ३६ ॥
शिवनैवेद्यके चैव
हरिनैवेद्यके तथा ।
करोति भेदबुद्धिं यो
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ३७ ॥
सर्वेश्वरेश्वरे कृष्णे
सर्वकारणकारणे ।
सर्वाद्ये सर्वदेवानां
सेव्ये सर्वान्तरात्मनि ॥ ३८ ॥
माययानेकरूपे वाप्येक एव हि
निर्गुणे ।
करोतीशेन भेदं यो ब्रह्महत्यां
लभेत्तु सः ॥ ३९ ॥
शक्तिभक्ते द्वेषबुद्धिं
शक्तिशास्त्रे तथैव च ।
द्वेषं यः कुरुते मर्त्यो
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ४० ॥
पितृदेवार्चनं यो वा
त्यजेद्वेदनिरूपितम् ।
यः करोति निषिद्धं च
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ४१ ॥
यो निन्दति हृषीकेशं तन्मन्त्रोपासकं
तथा ।
पवित्राणां पवित्रं च
ज्ञानानन्दं सनातनम् ॥ ४२ ॥
प्रधानं वैष्णवानां च
देवानां सेव्यमीश्वरम् ।
ये नार्चयन्ति निन्दन्ति
ब्रह्महत्यां लभन्ति ते ॥ ४३ ॥
ये निन्दन्ति महादेवीं
कारणब्रह्मरूपिणीम् ।
सर्वशक्तिस्वरूपां च
प्रकृतिं सर्वमातरम् ॥ ४४ ॥
सर्वदेवस्वरूपां च सर्वेषां
वन्दितां सदा ।
सर्वकारणरूपां च
ब्रह्महत्यां लभन्ति ते ॥ ४५ ॥
कृष्णजन्माष्टमीं रामनवमीं
च सुपुण्यदाम् ।
शिवरात्रिं तथा चैकादशीं
वारे रवेस्तथा ॥ ४६ ॥
पञ्च पर्वाणि पुण्यानि ये न
कुर्वन्ति मानवाः ।
लभन्ति ब्रह्महत्यां ते चाण्डालाधिकपापिनः
॥ ४७ ॥
अम्बुवाच्यां भूखननं
जलशौचादिकं च ये ।
कुर्वन्ति भारते वर्षे
ब्रह्महत्यां लभन्ति ते ॥ ४८ ॥
गुरुञ्च मातरं तातं साध्वीं
भार्यां सुतं सुताम् ।
अनिन्द्यां यो न पुष्णाति
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ४९ ॥
विवाहो यस्य न भवेन्न
पश्यति सुतं तु यः ।
हरिभक्तिविहीनो यो
ब्रह्महत्यां लभेत्तु सः ॥ ५० ॥
हरेरनैवेद्यभोजी नित्यं
विष्णुं न पूजयेत् ।
पुण्यं पार्थिवलिङ्गं च
ब्रह्महासौ प्रकीर्तितः ॥ ५१ ॥
गोप्रहारं प्रकुर्वन्तं
दृष्ट्वा यो न निवारयेत् ।
याति गोविप्रयोर्मध्ये
गोहत्या तु लभेत्तु सः ॥ ५२ ॥
दण्डैर्गोस्ताडयेन्मूढो यो
विप्रो वृषवाहनः ।
दिने दिने गोवधं च लभते
नात्र संशयः ॥ ५३ ॥
ददाति गोभ्य उच्छिष्टं
भोजयेद् वृषवाहकम् ।
भुनक्ति वृषवाहान्नं स
गोहत्यां लभेद् ध्रुवम् ॥ ५४ ॥
वृषलीपतिं याजयेद्यो भुङ्क्तेऽन्नं
तस्य यो नरः ।
गोहत्याशतकं सोऽपि लभते
नात्र संशयः ॥ ५५ ॥
पादं ददाति वह्नौ यो गाश्च
पादेन ताडयेत् ।
गेहं विशेदधौताङ्घ्रिः
स्नात्वा गोवधमाप्नुयात् ॥ ५६ ॥
यो भुङ्क्ते स्निग्धपादेन
शेते स्निग्धाङ्घ्रिरेव च ।
सूर्योदये च यो भुङ्क्ते स
गोहत्यां लभेद् ध्रुवम् ॥ ५७ ॥
अवीरान्नं च यो भुङ्क्ते
योनिजीव्यस्य च द्विजः ।
यस्त्रिसन्ध्याविहीनश्च
गोहत्या लभते च सः ॥ ५८ ॥
स्वभर्तरि च देवे वा
भेदबुद्धिं करोति या ।
कटूक्त्या ताडयेत् कान्तं
सा गोहत्यां लभेद् ध्रुवम् ॥ ५९ ॥
गोमार्गवर्जनं कृत्वा ददाति
सस्यमेव वा ।
तडागे वा तु दुर्गे वा स
गोहत्यां लभेद् ध्रुवम् ॥ ६० ॥
प्रायश्चित्ते गोवधस्य यः
करोति व्यतिक्रमम् ।
पुत्रलोभादथाज्ञानात्स
गोहत्या लभेद् ध्रुवम् ॥ ६१ ॥
राजके दैवके यत्नाद्
गोस्वामी गां न रक्षति ।
दुःखं ददाति यो मूढो
गोहत्यां स लभेद् ध्रुवम् ॥ ६२ ॥
प्राणिनो लङ्घयेद्यो हि
देवार्चामनलं जलम् ।
नैवेद्यं पुष्पमन्नं च स
गोहत्यां लभेद् ध्रुवम् ॥ ६३ ॥
शश्वन्नास्तीति यो वादी
मिथ्यावादी प्रतारकः ।
देवद्वेषी गुरुद्वेषी स
गोहत्यां लभेद् ध्रुवम् ॥ ६४ ॥
देवताप्रतिमां दृष्ट्वा
गुरुं वा ब्राह्मणं सति ।
सम्भ्रमान्न नमेद्यो हि स
गोहत्या लभेद् ध्रुवम् ॥ ६५ ॥
न ददात्याशिषं
कोपात्प्रणताय च यो द्विजः ।
विद्यार्थिने च विद्यां च स
गोहत्यां लभेद् ध्रुवम् ॥ ६६ ॥
गोहत्या विप्रहत्या च कथिता
चातिदेशिकी ।
गम्यां स्त्रियं नृणामेव
निबोध कथयामि ते ॥ ६७ ॥
स्वस्त्री गम्या च
सर्वेषामिति वेदानुशासनम् ।
अगम्या च तदन्या या चेति
वेदविदो विदुः ॥ ६८ ॥
सामान्यं कथितं सर्वं
विशेषं शृणु सुन्दरि ।
अत्यगम्या हि या याश्च
निबोध कथयामि ताः ॥ ६९ ॥
शूद्राणां विप्रपत्नी च
विप्राणां शूद्रकामिनी ।
अत्यगम्या च निन्द्या च
लोके वेदे पतिव्रते ॥ ७० ॥
शूद्रश्च ब्राह्मणीं गत्वा
ब्रह्महत्याशतं लभेत् ।
तत्समं ब्राह्मणी चापि
कुम्भीपाकं लभेद् ध्रुवम् ॥ ७१ ॥
शूद्राणां विप्रपत्नी च
विप्राणां शूद्रकामिनी ।
यदि शूद्रा व्रजेद्विप्रो
वृषलीपतिरेव सः ॥ ७२ ॥
स भ्रष्टो विप्रजातेश्च
चाण्डालात्सोऽधमः स्मृतः ।
विष्ठासमश्च तत्पिण्डो मूत्रं
तस्य च तर्पणम् ॥ ७३ ॥
न पितॄणां सुराणां च
तद्दत्तमुपतिष्ठति ।
कोटिजन्मार्जितं पुण्यं
तस्यार्चात्तपसार्जितम् ॥ ७४ ॥
द्विजस्य
वृषलीलोभान्नश्यत्येव न संशयः ।
ब्राह्मणश्च
सुरापीतिर्विड्भोजी वृषलीपतिः ॥ ७५ ॥
तप्तमुद्रादग्धदेहस्तप्तशूलाङ्कितस्तथा
।
हरिवासरभोजी च कुम्भीपाकं
व्रजेद् द्विजः ॥ ७६ ॥
गुरुपत्नीं राजपत्नीं
सपत्नीं मातरं ध्रुवम् ।
सुतां पुत्रवधूं श्वश्रूं
सगर्भां भगिनीं सतीम् ॥ ७७ ॥
सहोदरभ्रातृजायां मातुलानीं
पितुः प्रसूम् ।
मातुः प्रसूं तत्स्वसारं
भगिनीं भ्रातृकन्यकाम् ॥ ७८ ॥
शिष्यां शिष्यस्य पत्नीं च
भागिनेयस्य कामिनीम् ।
भ्रातुः पुत्रप्रियां
चैवात्यगम्या आह पद्मजः ॥ ७९ ॥
एताः कामेन कान्ता यो
व्रजेद्वै मानवाधमः ।
स मातृगामी वेदेषु
ब्रह्महत्याशतं व्रजेत् ॥ ८० ॥
अकर्मार्होऽप्यसंस्पृश्यो
लोके वेदे च निन्दितः ।
स याति कुम्भीपाके च
महापापी सुदुष्करे ॥ ८१ ॥
करोत्यशुद्धां सन्ध्यां वा
न सन्ध्यां वा करोति च ।
त्रिसन्ध्यं वर्जयेद्यो वा
सन्ध्याहीनश्च स द्विजः ॥ ८२ ॥
वैष्णवं च तथा शैवं शाक्तं
सौरं च गाणपम् ।
योऽहङ्कारान्न गृह्णाति
मन्त्रं सोऽदीक्षितः स्मृतः ॥ ८३ ॥
प्रवाहमवधिं कृत्वा
यावद्धस्तचतुष्टयम् ।
तत्र नारायणः स्वामी गङ्गागर्भान्तरे
वसेत् ॥ ८४ ॥
तत्र नारायणक्षेत्रे मृतो
याति हरेः पदम् ।
वाराणस्यां बदर्यां च गङ्गासागरसङ्गमे
॥ ८५ ॥
पुष्करे हरिहरक्षेत्रे
प्रभासे कामरूस्थले ।
हरिद्वारे च केदारे तथा
मातृपुरेऽपि च ॥ ८६ ॥
सरस्वतीनदीतीरे पुण्ये
वृन्दावने वने ।
गोदावर्यां च कौशिक्यां
त्रिवेण्यां च हिमाचले ॥ ८७ ॥
एषु तीर्थेषु यो दानं
प्रतिगृह्णाति कामतः ।
स च तीर्थप्रतिग्राही
कुम्भीपाके प्रयाति सः ॥ ८८ ॥
शूद्रसेवी शूद्रयाजी
ग्रामयाजीति कीर्तितः ।
तथा देवोपजीवी च देवलः
परिकीर्तितः ॥ ८९ ॥
शूद्रपाकोपजीवी यः सूपकार
इति स्मृतः ।
सन्ध्यापूजनहीनश्च प्रमत्तः
पतितः स्मृतः ॥ ९० ॥
उक्तं सर्वं मया भद्रे
लक्षणं वृषलीपतेः ।
एते महापातकिनः कुम्भीपाकं
प्रयान्ति ते ।
कुण्डान्यन्यानि ये यान्ति
निबोध कथयामि ते ॥ ९१ ॥
इति श्रीमद्देवीभागवते
महापुराणेऽष्टादशसाहस्र्यां संहितायां नवमस्कन्धे नारायणनारदसंवादे
सावित्र्युपाख्याने नानाकर्मविपाकफलवर्णनं नाम चतुस्त्रिंशोऽध्यायः ॥ ३४ ॥
* गौवंशीय पशु अधिनियम 1995 के अंतर्गत 10 वर्ष तक का कारावास
और 10,000 रुपए तक का जुर्माना है।
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