आश्रम के नित्यकर्म .
प्रातः स्मरण मन्त्र:-
ॐ गुरुजी ॐ सोहं का सकल पसारा।तज आलस कीन्हा दीदारा।
आठ प्रहर दुःख करियो टाला।धरती माता तोपे पांव धरे गोरख बाला।
आदिशक्ति दुर्गा,गोरी पुत्र गणेश,काली पुत्र काल भैरव,अंजनी पुत्र हनुमन्त रखवाला।
हथेली तो ब्रम्हा विष्णु महेश,गायत्री सावित्री पार्वती बसे,
कालिकादेवी और काल भैरव बसे लिलाट।
इतना प्रातः स्मरण जाप सम्पूर्ण भया।
शून्य की गादी बैठ श्री नाथजी ने आपो आप सुनाया।
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।
धरती पर बैठने का मन्त्र :-
ॐ गुरूजी धरती माता तू बड़ी।बड़ा तुम्हारा नाम।
रिद्धि सिद्धि की दात्री बेठन दे को थाम।इस धरती पर आसी कीलूँ बासी कीलूँ।
भूत कीलूँ प्रेत कीलूँ वेताल कीलूँ।
जूजंणी ऊपर बन्ध का बेला।
हनुमन्त की हांक से बैठाया चेला।
इतना धरती पर बैठने का जाप सम्पूर्ण भया।
शून्य की गादी बैठ श्रीनाथजी ने आपो आप सुनाया।
श्री नाथजी गुरूजी की आदेश।
लघुशंका करने का मन्त्र:-
ॐ गुरूजी सोने की इंद्री रुपे की धार।धरती माता तेरे को प्रथम नमस्कार।इतना लघुशंका जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ श्री नाथ जी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।
धरत्री गायत्री
सात नमो आदेश गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी |
आद अलील अनाद उपाया सत्यकी धरती जुहारलो काया
,पहले जल ,जल पर कमल ,कमल पर मच्छ,मच्छ पर करम
,करम पर वासुकि ,वासुकि पर धौल बैल ,
धौल बैल पर सींग,सींग पर राइ ,राइ पर
श्री नाथ जी ने नवखंड पृथ्वी ठहराई |
प्रथम धरत्री द्वितीय विशंभरा तीसरा मेरु मेदिनी चतुर्थे चतुर्भुजी पंचमे कृतिका ,
षष्टमे ब्रह्मचण्डी सप्तमी शिवकुमारी अष्टमे बल
बज्रजोगिनि नवमे नवदुर्गा दसमे सिंहभवानी
एकादशे मृतिका नाक द्वादशे वरदायनी |
माता धरत्री पिता आकाश ,पिंड प्राण का तो पर वास |
तो पर टेकु दोनों पाई आगमदे मेंलादु पाई |
धरती माता तू सबसे बड़ी तुझ से बड़ा न कोई
जो पग टेकु तोपर मोपर कृपा सुहाय |
धरती द्वादश नाम पठै गुणहै मनमे धरे |
जोगी का सब काम सिद्ध होय वाचा फुरे |
इतना धरत्री गायत्री द्वादश नाम जाप सम्पूर्ण भया |
अनंत कोटि सिद्धों में श्री नाथ जी ने कहा गुरु जी को आदेश
दादा मत्स्येन्द्र नाथ की पादुका को नमस्ते नमः |
औषधि पूर्ति पात्र दधाना सुमुखाम्बुजा
सर्व ससयालया शुभ्रा भूदेवी शरण भजे |
समुद्रवसने देवी ,पर्वत स्तनमंडले विष्णु पत्नी
नमस्तुभ्यम पाद स्पर्श क्षमस्व में ||
पांव उठाते समय निचे लिखा मंत्र पढ़े
सात नमो आदेश | गुरु जी को आदेश | ॐ गुरु जी |
जिस दिशा को सुर वहत चलै, अवर चलन को चित्तू |
सोई पग आगै धरो वेद कहे यहु हित्तु ||
चारि मंगला रवि प्रियने शशि सूर |
गोरख जोगी भाखिया यही जीवन का सूर ||
यह प्रक्रिया होने के बाद धरती पर पांव रखे तथा धरती माता को नमस्कार करे |
फिर निचे लिखे मन्त्र से हाथ पांव धोये तथा पानी पीये |
शौच करने का मन्त्र:-
ॐ गुरूजी उत्तम धरती मध्यम काया।भर्तहरि गोपीचन्द ने जोग जगाया।
जागो धरती माई,जागो नगर खेड़ा बस्ती गाँव के देवी-देवता,जागो पंच तत्व की काया।
काल भैरव की किलकारी से सतगुरु का चेला शौच को आया।इतना शौच जाप सम्पूर्ण भया।
शून्य की गादी बैठ श्री नाथजी ने आपो आप सुनाया।
नाथजी गुरूजी को आदेश।
दांतुन करने का मन्त्र:-
ॐ गुरूजी राजा रामचन्द्र जी माँगी लक्ष्मण जति भी माँगी मांगी सती सीता माई।
अंजनी पुत्र हनुमन्त ने माँगी दांतुन देओ अट्ठारह भार वनस्पति माई।
इतना दांतुन मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया।
शून्य की गादी बैठ श्री नाथजी ने आपो आप सुनाया।
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।
मुँह को साफ करने का मन्त्र( कुल्ला करने का):-
ॐगुरूजी वरुण देव का अलील में वासा।त्रिर्वेणी में करे निवासा।दांतुन कर मुख पाक करे सुधरे काया।महादेव जी ने गोरां पार्वती को यूँ समझाया। अलख निरंजन तेरी माया।इतना मुख पाक जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ श्री नाथजी ने आपो आप सुनाया।श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।
स्नान करने का मन्त्र :-
ॐगुरूजीॐ सोहं कमल का फूल।
जहां बसे ब्रम्ह का मूल।
हर गंगे हर नर्मदे हर जटाशंकरी।
काशी विश्व नाथ गंगे गोदावरी प्रयाग।
सरस्वती सिंधु कावेरी करो जल स्नान प्रथम स्नान।
सत्यशील दूसरा स्नान।तीसरा सतगुरु आदेश
चौथा क्षमा स्नान पांचवा दया स्नान
।ये पंच स्नान निर्मल भेष।नुगरी सँसार मर मर जाती।
जिस कारण गुरु गोरख नाथ उलटी थापना थापी।
ब्रम्हा भरे कमण्डल विष्णु भरे झारी।
नाह्वे धोह्वे महादेव जी गोरां पार्वती फल पावे भारी।
इतना स्नान गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।
शून्य की गादी बैठ श्री नाथजी ने आपो आप सुनाया
।श्री नाथजी गुरूजी को आदेश
भस्म गायत्री
सत नमो आदेश | गुरूजी को आदेश | ॐ गुरूजी |
भभूत माता ,भभूत पिता ,भभूत तरण तारणी|
मानुषते देवता करे ,भभूत कष्ट निवार्णी |
सो भष्मती माई ,जहा पाई तहा रमाई|
आदके जोगी अनाद की भभूत सत के जोगी धर्म के पूत |
अमृत झरे धरती फरे , सो फल माता गायत्री चरै |
गायत्री माता गोवरी करे ,सूरज मुख सुखी अगन मुख जरी |
अष्ट टंक भभूत नाव टंक पाणी ,ईश्वर आणि पारवती छाणि |
सो भस्मति हस्तक ले मस्तक चढ़ी |
चढ़ी भभूत दिल हुआ पाक ,अलख निरंजन आपो आप |
इति भस्म गायत्री सम्पूर्ण भया|
नाथजी गुरु जी को आदेश | आदेश | आदेश |
भस्म गायत्री से अलख जगाने के बाद भगवा बाणा पहना जाता है |
इसके लिए भगवा बाणा मंत्र या गोरक्ष गायत्री का जप किया जाता है |
भगवा धारण करने का मंत्र
सात नमो आदेश | गुरूजी को आदेश |
ॐ गुरूजी ,ॐ सोहँ धूंधूकारा शिव शिव शक्ति ने मिल किया पसारा |
नख से चीर बहग बनाया ,रक्त रूप से भगवा आया |
अलख पुरुष ने धारण किया ,तब पीछे सिद्धो को दिया |
आवो सिद्धो धरो ध्यान ,भगवा मंत्र भया प्रणाम |
इतना भगवा मंत्र सम्पूर्ण भया |
आदेश आदेश सिद्ध गुरूजी को आदेश | आदेश आदेश |
इसके बाद नाद जनेऊ मंत्र का ध्यान करके जनेऊ धारण किया जाता है |
नाद जनेऊ मंत्र
सत नमो आदेश गुरु जी को आदेश | ॐ गुरूजी |
आदि से शुन्य ,शुन्य में ओंकार ,आओ सिद्धो नाद बाँध का करो विचार |
नादे चन्द्रमा ,नादे सूर्य नाद रहा घट पिंड भरपूर |
नाद काया का पेखना ,बिन्द काया की राह |
नादे बिन्दे योगी तीनो एक स्वभाव |
बाजै नाद भई प्रतीत, आये श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ अतीत |
नाद बाजै काल भागै ,ज्ञान टोपी गोरक्ष साजै |
डंकनी शङ्कनि टिल्ले बाल गुंथाई ,बाड़े घाटे टल्ल जागै |
सुन सकेसर पीर पटेश्वर नगर कोट महामाई टिल्ला शिवपुरी का स्थान
चार युग में मान मूल चक्र मूल थान |
पढ़ मंत्र योगी बजावै नाद ,छत्तीस भोजन अमृत कर पावै |
बिना मंतर योगी नाद बजावै ,तीन लोक मैं कही ठार नहीं पावै |
जो जाने नाद बिन्द का भेद ,आप ही करता ,आपही देव |
संध्या शिवपुरी का बेला अनंत कोटि सिद्धो का युग युग मेला |
इतना नाद जनेऊ मंत्र सम्पूर्ण भया |
श्री नाथ जी गुरूजी को आदेश | आदेश | आदेश |
नाद जनेऊ मंत्र के बाद मृगछाल ,रुद्राक्ष ,माला, बीज माला या कोई अन्य माला धारण की जाती है |
इसके पश्चात् गणेशगायत्री का स्मरण किया जाता है |
अब गणेशगायत्री मंत्र
सत नमो आदेश | गुरूजी को आदेश | ॐ गुरु जी |
ॐ मूल चक्र को करलो पाक परसो परम ज्योति प्रकाश |
गणपत स्वामी सन्मुख रहे , शुद्धि बुद्धि निर्मली गहे |
गम की छोड़ अगम की कहे |सतगुरु शब्द भेद पर रहे |
ज्ञान गोष्ठी की काया थरपी नसतगुरु दियो लखाय |
मूल महल में पिंडक जड़िया गगन गर्जियों जय |
ॐ गणेशाय विद्यहे महागणपतये तन्नो एक दन्त प्रचोदयात |
इति गणेश गायत्री मंत्र संपूर्ण भया
अनंत कोटि सिद्धों में बैठकर गुरु गोरखनाथ जी सुनाया |
नाथ गुरु जी को आदेश
गोरख गायत्री
सात नमो आदेश | गुरूजी को आदेश | ॐ गुरूजी |
ओउम कारे शिव रूपी संध्या ने साध रूपी ,मध्यान्हे हंस रूपी
,हंस परमहंस द्वी अक्षर ,गुरु तो गोरक्ष ,काया तो गायत्री ,
ॐ तो ब्रह्म ,सोऽहं तो शक्ति ,शुन्य तो माता ,अवगति तो पिता ,
अभय पंथ अचल पदवी निरंजन गोत्र अलील वर्ण
विहंगम जाती ,असंख परवर अनंत शाखा सूक्ष्म भेद
, आत्म ज्ञानी ब्रह्मज्ञानी .
श्री ॐ गोरक्ष नाथाय विद्यहे शून्य पुत्राय धी महि
तन्नो गौरक्ष प्रचोदयात ,इतना गोरक्ष गायत्री पठ्यन्ते
हारते पाप श्रूयते सिद्धि निश्चय |
जपन्ते परम ज्ञान अमृतानंद मनुष्यते |
नाथ जी गुरु जी को आदेश |
आदेश | आदेश |
ॐ ह्रीम श्रीं हूँ फट स्वाहाः |
ॐ ह्रीम श्री गो गोरक्ष हूं फट स्वाहाः |
ॐ ह्रीम श्री गो गोरक्ष निरंजनात्मने हूं फट स्वाहाः |
इस प्रकिया के बाद महात्मा धुनें पर सभी को आदेश उठाते है |
फिर अपने कर्म की शुरुआत करते है |
नवनाथ स्वरूप
सत नमो आदेश ,गुरु जी को आदेश ,
ॐ गुरु जी ॐ कार आदिनाथ ॐ कार स्वरूप बोलिये
उदयनाथ पार्वती स्वरुप बोलिये
,सत्यनाथ ब्र्हमाजी स्वरूप बोलिये ,
संतोषनाथ विष्णुजी खडग खांडा तेज स्वरुप बोलिये
अचल अचम्भेनाथ आकाश स्वरुप बोलिये
,गजेबलि गजकंथडनाथ गणेशजी गज हस्ती स्वरुप बोलिये
,ज्ञानपरखी सिद्धचौरंगी नाथ अठारह भर वनस्पति स्वरुप बोलिये ,
मायारूपी दादा मत्स्येन्द्र्नाथ माया स्वरूपं बोलिये ,
घटे पिंडे नव निरंतरे सम्पूर्ण रक्षा करंते
श्री शम्भूजतो गुरु गोरख नाथ स्वरुप बोलिये
,इतना नो नाथ स्वरुप मंत्र सम्पूर्ण भया
अनंत कोट सिद्धो में बैठकर गोरखनाथ जी ने कहाया नाथ जी गुरूजी आदेश
सोते समय बोलने का मन्त्र:-
ॐ गुरूजी ॐ सोहं लोट पोट।श्री नाथजी की ओट।
पवन की मढ़ी वज्र का कोट।धरती करू बिछावना अम्बर करू गलेफ।
सोवे राजा भर्तहरि रक्षा करे अलेख।नवनाथ चौरासी सिद्धों की ओट।
गहि जब सोऊ।तीन लोक चौदह भवन सप्त पाताल में योगी को फांका फ़िकर न कोउ।
इतना निंद्रा जाप सम्पूर्ण भया।शून्य की गादी बैठ श्री नाथजी ने आपो आप सुनाया।
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।
।। प्रार्थना ।।
संध्या आरती
ॐ नम: पार्वती पतिय हर हर महादेव शम्भु....
बोलिये सत् शंभुजति गुरु गोरक्ष नाथ जी महाराज की जय,
श्री माया स्वरुपी दादा गुरु मछेन्द्र नाथ जी महाराज की
जय , श्री नौ नाथ चौरासी सिद्धों की जय,
श्री अपने अपने गुरु महाराज की जय,
श्री रमतेश्वर महादेव की जय,
श्री सनातन घर्म की जय,
श्री अटल क्षेत्र की जय,
श्री पात्र देवता भगवान की जय, श्री
ज्वाला महामाई की जय,
श्री सिद्ध बाबा चौरंगीनाथ जी महाराज की जय,
श्री सिद्ध बाबा गोपी चन्द भृतहरिनाथ जी महाराज की जय,
श्री नागे पीरों की जय, श्री
सिद्ध सुन्दरनाथ जी महाराज की जय,
श्री सिद्ध काले पीर जी महाराज की
जय, श्री गिरीनार के सिद्धों की जय, श्री
भीडभंजन महादेव की जय,
सर्व सिद्धों की जय, ध्यान धुनी माता की जय,
धरती माता की जय, गऊ माता की जय,
गंगे माई की जय, कालिका माई की जय,
जति सति नगर खेडो की जय,
अपने अपने माता पिता की जय,
आपने आपने गुरु महाराज की जय,
ॐ नम: पार्वती पतिय हर हर महादेव शम्भु....
हरि ॐ गुरु जी
कर्पुर् गौरम् करुणा वतारम् संसार सारम् भूजगेन्द्र हारम्
सदा बसन्तम् ह्रदयार बिन्दे भवम् भवानी सहितम् नमामि्
मन्दार माला कलि नाल काय कपाल माला अंकित कनथराय
दिव्यंबराय च दिगम्बराय नम: शिवाय च नम: शिवाय
गोरक्ष बालम गुरु शिष्य पालम् शेषा हिमालम शशि खण्ड भालम्
कालस्य कालम् जित जन्म जालम् बन्दे जटालम् जगदब्ज नालम्
गुरूर ब्रह्मा गुरूर विष्णु गुरूर देवो महेश्वर
गुरूर साक्षात पारब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नम:
घ्यान मुलम् गुरूमूर्ति पूजा मुलम् गुरूपदम्
मंत्र मुलम् श्री गुरू वाक्यम् मोक्ष मुलम् गुरू कृपा
मंत्र सत्यम् पूजा सत्यम् सत्यम् देव निरंजनम्
श्री गुरु वाक्य सदा सत्यम् सत्यम् एकम परम पदम्
हरि ॐ गुरु जी
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव
त्वमेव विधा द्रविणम् त्वमेव त्वमेव सर्वम् मम् देव देव
आकाशाय ताड़का लिगंम् पातालाय बटुकेश्वरम्
मृत्युलोके महाकालम् सर्व लिगंम् नमोस्तुते
शैली ऋगीं सिर जटा झोली भगवा भेष
कानन कुण्डल भस्म् लसे शिव गोरक्ष आदेश
अगम अगोचर नाथ जी पारब्रह्म अवतार
कानन कुण्डल सिर जटा अंग भभूति अपार
श्री चोटी हरी नाम की साज सिमरनी आप
सैली शृंगी आड्बंध क्षमा जनेऊ नाद
कानों मे कुंडल सबद के श्री सिद्ध बाबा मस्तनाथ
जय शिव शंकर हरे हरे
हरि ॐ गुरु जी
एक ओंकार तेरा आधार तिन लोक में जय जयकार
नाद बाजे काल भाजे ज्ञान की टोपी गोरक्ष साजे
गले हार फूलों की माला रक्षा करे गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज जी बाला
चार खाणी चार वाणी चन्दा सूर्य पवन पानी
एको देवा सर्वो सेवा ज्योत पाटले परसो देवा
कानन कुण्डल गले नाद
आओ सिद्धों करो ओंकार
सिद्धों गुरू पीरों को आदेश आदेश आदेश।